बुजुर्ग व्यथा
पुरजन-परिजन से नहीं मोह

वृद्धजनों से सतत् द्रोह

सामाजिकता का नहीं ज्ञान

कुतर्की, मनमौजी हो संतान

दिल की टीस बढ़ाता है

वह पुत्र नहीं रह जाता है।

 

स्वेद-बिन्दु के सिंचन से

अहर्निश भविष्य निर्माण हेतु

आजीवन करता है प्रयास

वह मृदुवाणी का आकांक्षी

जब वाक्शूल से बिंधता है

तब पुत्र नहीं रह जाता है।

 

सतत् संतति प्रेम निरत

स्व-सुख सुविधा से सतत् विरत

संतति को योग्य बनाता है

लेकिन जब मिलता तिरस्कार

जब हृदय रूदन-कंद्रन करता

तब पुत्र नहीं रह जाता है।

 

इच्छा ही दुख का कारण है

कम इच्छा कष्ट निवारण है

जीवन का है यह परम सत्य

जब पुत्र कुपुत्र बन जाता है

तब वारिस मात्र रह जाता है।

वह पुत्र नहीं कहलाता है।

 

प्रस्तुति

डॉक्टर श्यामल किशोर पाठक