बच्चे हैं भविष्य देश के
बचपन हमें बचाना है
नियोजकों से मुक्त कराकर
विद्यालय पहुँचाना है।
बालश्रम का कलंक मिटाकर
जीवंत समाज बनाना है।
छः से चौदह बरस के बच्चे
उम्र के कच्चे, मन के सच्चे
विद्यालय जब जाना होता
भेजे जाते ईंट के भट्ठे
दरी, कालीन से त्राण दिलाकर
शिक्षित उन्हें बनाना हैं।
जीवंत समाज बनाना है।
बच्चे हैं अरमान हमारे
गीता औ कुरान हमारे
गुरूग्रंथ बाइबिल हमारे
सजग देश की शान हमारे
स्नेह, प्रेम से आवेशित कर
आगे उन्हें बढ़ाना है।
जीवंत समाज बनाना है।
नीरस औ श्रमसाध्य जिंदगी
बच्चे ढ़ोते रहते हैं
बचपन बने पिता बचपन का
असमय बूढ़े होते हैं।
बालश्रम की घृणित प्रथा से
बच्चे शोषित होते हैं
बचपन की किलकारी को
वापस उन्हें दिलाना है।
जीवंत समाज बनाना है।
बच्चा, बचपन औ बालकपन
करता है यह यक्ष प्रश्न
गाँधी, लोहिया की कर्मभूमि में
कब होंगे पूरे स्वतंत्र
बालश्रम मुक्त समाज
कब प्रबल बनेगा प्रजातंत्र?
उत्तर खोजें, हम करें यत्न
देश की ‘मुस्कान’ बचाना है
जीवंत समाज बनाना है।।