सुखद-दुखद, चाही-अनचाही
घटनाएँ घटती अक्सर
कभी हास्य में, कभी रूदन में
सुख के क्षण में, दुख के मन में
इच्छाओं के मकड़जाल में
उलझा रहता है हरदम
अवसर देता है परिवर्तन
समझ नहीं पाता मानव-मन।
प्रकृति को परिवर्तन प्यारा
ऋतु-परिवर्तन बड़ा निराला
कभी पतझड़, कभी वसंत
परिवर्तन अतुलित आनंद
गर्मी कभी, बरसात कभी
आते-जाते शरद-हेमंत
प्रकृति का संदेश चिरंतन
परिवर्तन जारी आजीवन।
परिवर्तन है जीवन-धारा
उथल-पुथल, मीठा या खारा
महज संयोग नहीं परिवर्तन
यह तो है प्रारब्ध प्रबल
उन बातों पर व्यर्थ न सोचें
जिनपर चले न अपना वश
कर्त्तव्य-पथ पर सतत् अग्रसर
अपेक्षित होगा उसका फल।
परिवर्तन तो उत्प्रेरक है,
जीवन जीने का आधार
श्रम, क्षमता के संबल से
कर सकते सपने साकार
कर्म-भाग्य के मध्य में किंचित
विचलित जब हो अंतर्मन
‘कर्मण्येवाधिकारस्ते’ हो
जीवन-पथ का मूलमंत्र।।